


कहते हैं कि एक रास्ता बंद होता है तो कई रास्ते खुल जाते हैं। यह बात कूटनीति पर भी लागू होती है। शीत युद्ध के दौरान भारत और अमेरिका के रिश्ते बहुत अच्छे नहीं थे। सोवियत संघ बिखरा तो भारत ने कूटनीतिक तौर पर रूस से मित्रता पहले की तरह ही बनाए रखी,लेकिन बीते दो दशकों में अमेरिका के साथ भी अच्छे संबंध स्थापित हुए थे। लेकिन, अपने दूसरे कार्यकाल में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के प्रति अचानक बेरुखी दिखानी शुरू कर दी। वहीं, चीन जिसके साथ भारत के ताल्लुकात गलवान घाटी की वजह से बहुत बिगड़ गए थे, उसके साथ रिश्तों में एक नई शुरुआत की संभावना दिखने लगी है। हालांकि, इतिहास की वजह से भारत के लिए चीन पर पूरी तरह से भरोसा करके चलना संभव नहीं है, लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में गुण-दोष के मुताबिक उसके साथ संबंध बेहतर करने में भी बुराई नहीं है।
सीमा विवाद सबसे बड़ा मुद्दा
भारत और चीन के बीच विवाद की सबसे बड़ी वजह सीमा पर उसकी चालबाजियों के चलते छाया रहने वाला संदेह है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सोमवार को अपने चीनी समकक्ष वांग यी के साथ द्विपक्षीय बातचीत में भी कहा है कि अगर भारत और चीन के रिश्तों में प्रगति चाहते हैं तो सीमा पर शांति बनी रहनी बहुत जरूरी है। उन्होंने वास्तविक अनुभवों के अनुसार ही सहयोगी रवैया अपनाने का संदेश दिया, क्योंकि दोनों देश इसकी वजह से मुश्किल दौर देख चुके हैं।
चीन ने दिया सकारात्मक संकेत
विदेश मंत्री ने साफ किया कि 'इसके लिए दोनों ओर से स्पष्ट और रचनात्मक नजरिए की आवश्यकता है। इस कोशिश में हमें तीन परस्पर सिद्धांतों का पालन करना होगा-परस्पर सम्मान, परस्पर संवेदनशीलता और परस्पर हित। हमारे मतभेद, विवाद या प्रतिस्पर्धा या संघर्ष में नहीं बदलने चाहिए।
अमेरिका के लिए छिपा है संदेश
चीन के विदेश मंत्री ने एस जयशंकर को अपने जवाब में कहा कि दोनों देशों ने सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और सौहार्द बनाए रखा है। उन्होंने यह भी कहा कि दोनों मुल्कों ने बाहरी दखल से निपटने, आपसी सहयोग का विस्तार करने और द्विपक्षीय रिश्तों में चल रहे सुधार को और मजबूत करने का विश्वास साझा किया।